Tuesday, February 2, 2010

कुछ सवाल...

जैसे दो यार मिले नुक्कड़ पे,
वैसे ही तुझसे आज, मिलने को जी करता है।
माओ के आंसु बनकर बह गए जो,
वोह सवाल तुझसे आज करने को जी करता है।


नन्ही कलि जो कुचली थी तुने,
नफ़रत
का बीज बोया था जो,
हजारों घर जो उजाड़े है तुने,
बच्चों
को अनाथ कर आया था वोह,
हर उस बच्चे की चीख सुनाकर तुझको,

तेरी चैन की नींद का इंतज़ार करनेको जी करता है।
माओ के आंसु बनकर बह गए जो,
वोह सवाल तुझसे आज करने को जी करता है।


तेरी गोली के शिकार हुए उस शख्स की,
बेवा
जब फूट फूट कर रोती है,
मैं भी यह देखना चाहता हूँ की,
एस
लाचारी की ख़ुशी आखिर कैसी होती है।
तेरी एस कमियाबी में आज,
शरीक
होकर जष्न मनाने को जी करता है।
माओ के आंसु बनकर बह गए जो,
वोह सवाल तुझसे आज करने को जी करता है।



तू तो फिर भी इंसान है, आज नहीं तो कल जायेगा,
तेरे जाने से भी मेरा, कुछ खास फायेदा नहीं हो पायेगा।
तुझे ज़िन्दगी बक्श के आज,
तेरी
सोच का क़त्ल करनेको जी करता है।
माओ के आंसु बनकर बह गए जो,
वोह सवाल तुझसे आज करने को जी करता है।

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Write... Pray!

I want to write. Mostly because I want to be read. Truthfully, because I want to be understood. I love writing because it leaves no scope fo...